गुरुवार, नवंबर 18, 2010

क्योंकि जानती हूँ उसमे काफी गहराई है

छोड़ आई हूँ ,
सारा खारापन
आज सागर के पास |
किनारे पर,
मुझे विचलित सा देख
एक लहर मुझसे टकराई
और कहा ?
दे दो,  अपनी आँखों की नमी
इसके खारापन को
 इसे समेट लूँ  मै  ख़ुद में ।
क्योंकि,
मुझमे असीम धैर्य
और  गहराई है ।
मै भी
शांत चित से छोड़ आई
अपना सारा खारापन ,
सागर के पास ।
क्योंकि जानती हूँ
उसमें  काफी गहराई है।

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"