"नहीं सीख पाया मन मेरा छलावा,
जो लगाती मै भी मुखौटा ,
मुझ पर भी चढ़ जाते रंग जमाने के.
"रजनी मल्होत्रा नैय्यर"
बुधवार, अक्तूबर 13, 2010
नहीं सीख पाया मन मेरा छलावा
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रजनी मल्होत्रा ( नैय्यर) झारखण्ड बोकारो थर्मल , शिक्षा -इतिहास (प्रतिष्ठा)बी.ए. , संगणक विज्ञान बी.सी .ए. , हिंदी से बी.एड , हिंदी ,इतिहास में स्नातकोत्तर | हिंदी में पी.एच. डी. जारी | लालन पालन झारखण्ड के रांची में, विवाहोपरांत बोकारो थर्मल | मंच पर काव्य पाठ | प्रथम काव्यकृति ----"स्वप्न मरते नहीं “ संकलन "काव्य संग्रह " ह्रदय तारों का स्पन्दन , पगडंडियाँ " व् मृगतृष्णा " में ग़ज़लें | हिंदी- उर्दू पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित .|
"नहीं सीख पाया मन मेरा छलावा,
जो लगाती मै भी मुखौटा ,
मुझ पर भी चढ़ जाते रंग जमाने के.
"रजनी मल्होत्रा नैय्यर"
8 comments:
बहुत ही अच्छी शायरी ...
www.srijanshikhar.blogspot.com पर " क्योँ जिन्दा हो रावण "
bahut khoob
kam me jayda
badhai
क्या खूब लिखा है रजनी जी...
aap sabhi ko mera hardik aabhar .........
!!!!!!
Ashish
दशहरा की ढेर सारी शुभकामनाएँ!!
bahut sundar likha hai aapne.........ati sundar
aabhari hun is sneh ke liye..........
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