जब ज़िंदगी मुख़्तसर है दुआएँ भी क्या करें
आधी मनाने में निकले आधी आज़माने में
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ओढ़ रखी हैं जो उदासियों ने चादर
मुस्कुराहटें कह रही फेंक दे उतार के
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फेंक कर सिक्के कभी दी गईं किसी मजबूर को
उसकी दुआएँ भी कभी लग जाती है इंसान को
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ऐसे रीझ पड़ी मुझपर अँधेरी बस्तियाँ
जैसे कोई जगमगाता सूरज मेरे पास हो
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ज़िंदगी तेरा हर फ़ैसला मंज़ूर है
बस वक़्त को मेरे हक़ में कर दे
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बेबसी बेक़सी दर्द चैन ख़ुशी
ज़िंदगी बता क्या क्या तेरे नाम हैं
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प्रफुल्लित है सृष्टि सारी झूम रहे धरती अम्बर
बस रोक लग गयी भागते मानव की रफ़्तार को
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बढ़ जाता है सौन्दर्य सँवरने से
श्रृंगार हुस्न का मददगार है
"लारा"
9 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
आदरणीय बहुत बहुत आभार🙏
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में शुक्रवार 08 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आदरणीय यशोदा जी आभार 🙏
सुन्दर प्रस्तुति
वाह
धन्यवाद आप सुधिजनों का 🙏
बहुत सुंदर सृजन
आभार ज्योति जी
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