लटकती झुर्रियां
झूलते हाथ-पांव ,
ढूंढ रहे
मुक्ति का रास्ता |
भटक रहा सड़कों पर
बिता हुआ कल
सरहद बन गयी जबसे
घर की दीवारें ...
यादें नापती हैं, ज़मीं
कभी आकाश |
हथियार डाले उनका आज
बैठ गया है
वील चेयर पर ...
पुकार रहा
धराशायी सिपाही सा ,
बुजुर्गों का भविष्य !
जी रहा है कछुआ
छिपा कर ,
खोल के भीतर का रहस्य ...
जो बिलकुल सपाट है |
" रजनी मल्होत्रा नैय्यर "
झूलते हाथ-पांव ,
ढूंढ रहे
मुक्ति का रास्ता |
भटक रहा सड़कों पर
बिता हुआ कल
सरहद बन गयी जबसे
घर की दीवारें ...
यादें नापती हैं, ज़मीं
कभी आकाश |
हथियार डाले उनका आज
बैठ गया है
वील चेयर पर ...
पुकार रहा
धराशायी सिपाही सा ,
बुजुर्गों का भविष्य !
जी रहा है कछुआ
छिपा कर ,
खोल के भीतर का रहस्य ...
जो बिलकुल सपाट है |
" रजनी मल्होत्रा नैय्यर "