शुक्रवार, फ़रवरी 01, 2013

समय का यह ठिठुरा संवाद

वेदना के तारों का ,
छिड़ा मन से विवाद,
देख कर ,
समय का यह ठिठुरा संवाद !
रुग्न बसंती बयार,
कुपित श्रृष्टि का सार,
प्रकृति भी मौन ,
वो संचालक कौन ?
प्रत्यक्ष है प्रमाणित,
फिर भी है निर्विवाद !
सलज से अब मूक नैनों के शील,
पाप की सरिका कान्तिमान ,
अँधेरे का चारण बना विहान |
समीहा में जलते प्राण
कैसे हो युगनिर्माण ?
वेदना के तारों का ,
छिड़ा मन से विवाद,
देख कर ,
समय का यह ठिठुरा संवाद !