सोमवार, दिसंबर 17, 2012

चांदनी रात मिलती रहे |


जीवन की आपाधापी  के ,
उठते  हुए    बादल     से,  
अहसास  की   धरा    पर,
उम्मीद की फ़सल खिलती रहे |

घुमड़ते   हुए  ख्याल  ,
कुछ उलझे से  सवाल,
कभी बूंद बनकर बरसे ,
कभी ज्योति सी  जलती  रहे  |

जुगनुओं सी भटकाव में,
कुछ धूप  में कुछ छाँव में ,
असंख्य   अनुभूतियाँ
जीवन  में मिलती रहे |


अश्रुपूरित नयन  लिए ,
कभी उल्लसित तरंग लिए
एक सम्पूर्ण गगन लिए,
विह्वल ,आकुल चातक से
चांदनी रात  मिलती रहे |

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "