गुजरे बरस ये तेरह , जैसे कटे बनवास ,
फिर उठी मन में कामना मधुमास की.
आज मेरे विवाह को तेरह वर्ष पूरे हो गए, अपने मन के विचारों को शब्दों में पिरो कर हर वर्ष की तरह आज भी एक रचना अपने पति राजेश के लिए
फिर उठी मन में कामना मधुमास की.
आज मेरे विवाह को तेरह वर्ष पूरे हो गए, अपने मन के विचारों को शब्दों में पिरो कर हर वर्ष की तरह आज भी एक रचना अपने पति राजेश के लिए
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मैं शब्दों में बंधकर लड़ी बनू,
तुम मेरे गीत के तान बनो.
थक गए पग मेरे चलकर तन्हा ,
मेरे ज़र्जर तन के प्राण बनो.
मै बनूँ दीपों की मालिका,
तुम अमर लौ की बान बनो.
मै बन जाऊं ग़ज़ल तेरी,
तुम महफ़िल की शान बनो.
मै पावस की सुरभित रजनीगंधा,
तुम खुला निलाभ आसमान बनो.
मै बनू सुहासिनी तेरी "रजनी" ,
तुम जन्मों तक मेरे सुजान बनो.
"रजनी"
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