शनिवार, जुलाई 02, 2011

बस तेरी तस्वीर से लिपटी, घर- बार अधूरा लगता है

जिस गीत पर झूमता था दिल ,
उस गीत का हर तार अधूरा लगता है,

बंध जाते थे नैन मेरे आईने से बरबस ,
तुम बिन ये रूप श्रृंगार अधूरा लगता है.

सजाते रहे ग्रीवा को असंख्य ज़ेवरात  से
तेरे मोती के हार बिन,अलंकार अधूरा लगता है.

राहें सूनी ,पनघट सूना, सूना सारा  संसार,
रूठे जबसे श्याम , राधा का प्यार अधूरा लगता है .

यादों से सराबोर मेरा ह्रदय चाक- चाक,
बस तेरी तस्वीर से लिपटी, घर- बार अधूरा लगता है.

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"