मंगलवार, अप्रैल 05, 2011

तुम्हारे बगैर

कई बार,
अनगिनत प्रश्न किये
प्रियतम ने,
प्रेयसी  से|
क्या वजूद है ?
हमदोनों  के बीच
जो बंधी डोर है
आत्मिक .शारीरिक, 
या फिर मन से ,
मन का बंधन ?
कुछ पल मौन
सुनती रही
अपने प्रीतम की
बातों को |
फिर कुछ क्षण
रुक कर कहा 
निष्प्राण थे,

मेरे 
आत्मा,तन और मन,
पर ,
तुम्हें   पाने के बाद
झंकृत हो गए हैं
मेरे रोम -रोम पुलकित होकर ।
तुम्हीं   कहो ?
क्या वजूद है मेरा,
तुम्हारे बग़ैर | 

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"