एक वक़्त था
जब मेरे जन्म पर
तुमने कहा था
कुल्क्छिनी
आते ही
भाई को खा गयी |
माँ तेरी ये बात
मेरे बाल मन
में घर कर गयी
मेरा बाल मन रहने लगा
अपराध बोध से ग्रस्त
पलने लगे कुछ विचार ,
क्या करूँ ऐसा ?
जिससे तेरे मन से
मिटा सकूँ मैं
वो विचार
कम कर सकूँ
तुम्हारे
मन के अवसाद को |
वक़्त गुजरते गए
ज़ख्म भी भरते गए
फिर आया
एक ऐसा वक़्त
जब तुमने ही कहा
बेटियां कहाँ पीछे हैं
बेटों से
वो तो दोनों कुलों का
मान बढाती हैं ।
माँ
शायद तुम्हें भी
अहसास हो गया
क़ि जन्म नहीं
कर्म भाग्य बनाता है
बेटों का भी,
और बेटियों का भी ।
" रजनी नैय्यर मल्होत्रा "