शनिवार, दिसंबर 31, 2011

हर शख्स पे तेरा चेहरा नज़र आने लगा है

अब  तो  हर शय  पर  तू   छाने   लगा   है
हर शख्स पे तेरा चेहरा नज़र आने  लगा है.                                                                     

चाहत में  मिलेगी ऐसी सज़ा  , मालूम न था                                      
 रह -रह  कर याद-ए-माज़ी  सताने  लगा  है.

भर जाते हैं ख़्वाब  आँखों में, नींद आये बिना,
तू तो जगती आँखों में सपना दिखाने लगा है.

यह   अदा-ए -बेन्याज़ी   जान ले लेगी  मेरी
तेरी   ख़ामोशी   मुझे पागल  बनाने लगा है.

कभी   वक़्त   को   हम     आज़माते     थे,
आज   वक़्त    हमें    आज़माने    लगा  है.

 अब    कटते    नहीं   हैं ये लम्हे ये घड़ियाँ,
मौसम   भी अपना    रंग  दिखाने   लगा है.

अब   तो हर   शय   पर तू   छाने  लगा  है,
हर शख्स पे तेरा चेहरा नज़र आने लगा है.



12 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

अच्छा काफ़िया लगा। नूतन वर्ष की शुभकामनाएं

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

hardik aabhar aapdon ko.......

gafil ji.......

lalit ji .........yun hi achhaiyon ke sath kamiyan bhi batayenge.......

virendra sharma ने कहा…

मंगल मय नव वर्ष आपको ,मुबारक हो साल की हर सुबह शाम आपको .ब्लॉग की विविधता अपनी रचनाओं से बढाए रहें .
अब तो हर सू तेरा चेहरा छाने लगा है .आईने में खुद को देखू नजर तू आने लगा है .

Kunwar Kusumesh ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना.
नए साल की हार्दिक बधाई आपको

vandana gupta ने कहा…

्बहुत सुन्दर ……………नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं.

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

mera hardik aabhar aap sabhi ko

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

VAH BS AK HI VAKY ... KYA KHOOB LIKHA HAI .

Unknown ने कहा…

khubsurat rachna

Sonit Bopche ने कहा…

aapki is sundar raachna se man harshit ho utha..sath hi aapki "bhar do jam se paimana mera" bhi bahut achchi lagi...aapko nav varsh ki haardik badhai..evam kabhi mere yahan bhi aayen..margdarshan ki abhilasha hai..

यादों का दरीचा खुला रहने दो ने कहा…
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यादों का दरीचा खुला रहने दो ने कहा…

रजनी जी सबसे पहले आपको नए साल की मुबारकबाद पेश करता हूँ | खुबसूरत ग़ज़ल है आपकी, इसमें यादों की कशक , माज़ी की तल्ख़ी ,नाकामी -ए-मुहब्बत , आम इन्सान का रेवाईती आमियानापन सबकुछ शामिल है इसमें |इसलिए तो एक बड़े शायर ने कहा है-----

"याद-ए-माज़ी अज़ाब है या रब ,
छीन ले मुझसे हाफ्ज़ा मेरा "

शेरघाटी ने कहा…

idhar niyamit aapki rachnaon se waaqif ho raha hun.aap nisandeh kamaal kar rahi hain.pichhli gazal bhi khoob thi.