सोमवार, नवंबर 28, 2011

ये हँसता हुआ झील का कवल

"मेरी  चलती रूकती  सांसों पर ऐतबार तो  कर,
ये हँसता हुआ झील का कवल,  मेरे बातों पर ऐतबार तो  कर,
तू यूँ ही खिल जायेगा जैसे दमकता माह ,
बस एक बार मुस्कुरा के दीदार तो कर . "

9 comments:

SANDEEP PANWAR ने कहा…

कर लिया जी ऐतबार भी, मुस्करा भी दिये अगर आपने देखा हो तो,

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत सुंदर पंक्तियाँ....

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

वाह !
क्‍या बात है.....
सादर...

vandana gupta ने कहा…

बहुत खूब्।

Urmi ने कहा…

मेरे ब्लॉग पर आकर उत्साहवर्धक टिप्पणी देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! मेरे इस ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com
बहुत सुन्दर लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

Rakesh Kumar ने कहा…

आपका बात प्रस्तुत करने का ढंग निराला है जी.
पढकर प्रसन्नता मिली.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति

दिगम्बर नासवा ने कहा…

उनका मुस्कुराना जैसे खिलया कँवल ... कुय कहने ...

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

मै परीक्षा के व्यस्तता के कारण ब्लॉग तथा घर दोनों से दूर थी ,अथ माफ़ी चाहूंगी ब्लॉग साथियों से और ब्लॉग से दूर रहने की आपसबके टिप्णियों की कोई जवाब भी नहीं दे पाने का खेद है.......