"कहते हैं लोग महबूब सनम को,
बदल गयी तुम्हारी नज़रे,
पर ये समझ नहीं पाते,
वो भी तड़पा होगा उसी तरह ,
खुद को बदलने में,
जैसे आत्मा तड़पती है,
तन से निकलने में."
-"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
सोमवार, सितंबर 13, 2010
वो भी तड़पा होगा उसी तरह खुद को बदलने में
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 13.9.10 5 comments
Labels: Poems
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