स्याह रात में,
तेरा चेहरा नज़र नहीं आया,
तभी मन मेरा,
तेरा दर्द पढ़ नहीं पाया,
जब पड़ी निगाहें मेरी,
तेरे चेहरे पर,
बहुत देर हो चुकी थी,
तेरे आँखों की लालिमा ने ,
सबकुछ बयाँ कर दिया,
सजा तो दे दिया तुम्हें,
पर गुनाहगार खुद को पाया,
वो कहना तेरा,होके जार,जार,
पहली ही गलती पर फांसी की सज़ा दे दी,
सजा तो दे दिया तुम्हें,
पर गुनाहगार खुद को पाया,
मेरे गुनाहों की सजा,
इससे बड़ी क्या होगी,
दो बूंद आंसू तेरे,
मेरे लिए डूबने को काफी है .
तेरे एक अनकहे शब्द में भी,
कितने उभरे भाव है,
क्यों नहीं देख पाए मैंने,
जो मन पे छाये घाव हैं,
तेरे आँखों की लालिमा ने ,
सबकुछ बयाँ कर दिया,
जब पड़ी निगाहें मेरी,
तेरे चेहरे पर,
बहुत देर हो चुकी थी.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "
शनिवार, जनवरी 02, 2010
दो बूंद आंसू तेरे, मेरे लिए डूबने को काफी है .
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 2.1.10 1 comments Links to this post
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