शुक्रवार, अगस्त 20, 2010

मंजिल तक आकर कदम फिसलते देखा है

जीवन की सफर में लय  से सुर को छूटते  देखा है.
 अक्सर लोगों को बन कर भी बिखरते देखा है,

एक छोटी सी भटकाव भी बदल देती है रास्ता.
 मंजिल तक आकर कदम फिसलते देखा है.

2 comments:

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

hamne bhi dekha hai, aisa kuchh........kab kis samay manjil ko samne dekh kar bhi logo ko fisalte dekha hai..........aur gum hote bhi......

pyari baat......:)

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

han aksar ye hota hai .............aabhar