सांसों में जिसे महसूस करते हैं वो आप हैं,
हर आहट पर जिसकी अहसास होती है वो आप हैं,
हवा भी चले तो ऐसा लगता है आप हैं,
हम आँखें बंद करें तो बंद आँखों में भी आप हैं,
क्या कहें मेरे लिए तो सारी कायनात ही आप हैं.
शनिवार, नवंबर 28, 2009
सांसों में जिसे महसूस करते हैं वो आप हैं
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 28.11.09 2 comments
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कैसे कह दूँ कि साँस लेने से जिन्दा हूँ
साँस लेने से तेरी याद आती है,
न लेने से मेरी जान जाती है,
कैसे कह दूँ कि साँस लेने से जिन्दा हूँ ,
जबकि हर साँस से पहले तेरी याद आती है.
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 28.11.09 2 comments
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हम हँस कर तेरी राहों में दीप बन जायेंगे
हर दिन रब से यही दुआ है हमारी,
ज़िन्दगी के सफ़र में तू सब कुछ पाए,
कदम रख दे तू जिस राह पर,
वो तेरी मंजिल बन जाए,
अगर तेरे रास्ते में हो कभी अँधेरा,
तो रब रोशनी के लिए मुझे जलाये,
हम हँस कर तेरी राहों में दीप बन जायेंगे,
आये मुश्किल रूपी अँधेरे को हम जलकर हटायेंगें.
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 28.11.09 0 comments
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पर वो अपना ना हुआ
उस ख्वाब के पीछे क्यों जाते हैं हम,
जो कभी हमारा ना हुआ,
चाहा था अपना बनाना ,
पर वो अपना ना हुआ|
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 28.11.09 0 comments
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गैरों पे अपना सबकुछ लुटाने वाले बहुत कम होते हैं
गैरों पे अपना सबकुछ ,
लुटाने वाले बहुत कम होते हैं,
अपने ही हाथों ,
अपनी खुशियाँ,
मिटाने वाले कम होते हैं,
सुना है ,
जब साथ किसी का मिले,
अँधेरे में भी उजाले हो जाते हैं,
तुम पर फिर भी ,
न जाने कैसे ,
कर लिया यकीन,
ये जानते थे ,
भरोसा निभानेवाले ,
लोग बहुत कम होते है.
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 28.11.09 2 comments
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कमल भी तो कीचड़ में ही खिलते हैं
दिल चाहता है छोड़ दूँ इस मतलबी संसार को,
क्या रक्खा है यहाँ जीने में सिर्फ दर्द ही तो मिलते हैं,
पर ये सोंच कर ठिठक जाते हैं मेरे कदम,
अगर कमल भी सोंच ले ऐसे बातों को तो क्या हो,
कमल भी तो कीचड़ में ही खिलते हैं.
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 28.11.09 0 comments
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जा तो रही थी बारात किसी की, पर मुझे वो मेरी अर्थी लगी.
दिल में उदासी ,
ऐसी छाई कि,
सारा जमाना ही .
हमे उदास लगा,
सूरज आसमा पे,
चढा था पर,
हमे बादलों का ,
समां दिखा,
गुलाब पड़े थे सामने,
पर हमे तो,
वो सिर्फ,
कांटें ही लगे,
बात हंसी कि थी,
सब हँसे,
हम ऐसे में रो पड़े,
जा तो रही थी,
बारात किसी की,
पर मुझे वो,
मेरी अर्थी लगी.
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 28.11.09 2 comments
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कहते हैं समझदार इशारे की बात समझ लेते हैं,
कहते हैं समझदार इशारे की बात समझ लेते हैं,
सपनों में गर मिल जायें मुलाक़ात समझ लेते हैं,
रोता तो आसमां भी है धरा के लिये,
पर लोग इसे बरसात समझ लेते हैं.
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 28.11.09 0 comments
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मुझे क्यों मिटा रहे हो ?(एक अजन्मी लड़की की मन की व्यथा.)
मुझे क्यों मिटा रहे हो ?(एक अजन्मी लड़की की मन की व्यथा.)
मुझसे ही तुम्हारा अस्तित्व है,
फिर मुझे क्यों मिटा रहे हो?
दुनिया में आने से पहले मेरा निशां मिटा रहे हो,
मेरी भी तमन्ना है दुनिया में आने की,
आपकी तरह दुनिया को आजमाने की,
जब सुनते हो आप कोई नया मेहमां घर आ रहा है,
हो जाते हो बेकाबू ऐसे,बिना पिए ही नशा छा रहा है,
मेरा पता चलते ही ऐसे मुर्झाते हो,जैसे मै नही कोई बोझ आ रहा है,
जब चलता है पता आनेवाला मेहमां है लड़की,
जेबों में आपकी छा जाती है कड़की,
जैसे आपके जिगर का टुकडा नहीं कोई कोढ़ हो,
कह देते हो झट से लड़का होता तो रख लेते,
और जन्म लेने से पहले मुझे मार देते हो,
मानते हो अगर कन्या का जन्म अभिशाप है,
तो जन्म से पहले इसको मिटाना,सबसे बड़ा पाप है,
कन्या जन्म नहीं,हमारा समाज एक अभिशाप है,
ये धारणा आखिर कब तक मन में धरी रहेगी,
सब गुणों से पूर्ण होकर भी बेटी कब तक शून्य रहेगी,
बेटा चाहे औगुन से भरा हो,वो घी का लड्डू कहलाता है,
चड़ा है जो बेअक्ल का पर्दा हमारे समाज पर,
पता नहीं ये कब उतरेगा इस तुलना की कसौटी से,
एक गाड़ी को चलाने के लिए जैसे दो पहिये की जरूरत है,
वैसे ही तो समाज की बेल को बढ़ाने के लिए दोनों ही पूरक हैं,
एक की कमी से समाज चल नहीं पायेगा,
यही हाल रहा तो धीरे धीरे संसार से,
लड़कियों का अस्तित्व ही मिट जाएगा,
समाज की इस बढ़ती बेल को कीट लग जाएगा,
जो वंश बेल की रफ्तार को रोक लगायेगा,
हमारा समाज बढ़ेगा नहीं,पतन के गर्त में गिर जाएगा,
मुझे क्यों मिटा रहे हो?
मुझसे ही तुम्हारा अस्तित्व है,
फिर मुझे क्यों मिटा रहे हो,
दुनिया में आने से पहले,मेरा निशां मिटा रहे हो.
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 28.11.09 0 comments
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खुद का जख्म छूपाते फिरते गैरों पर नमक लगाते हैं
खुद का जख्म छूपाते फिरते ,
गैरों पर नमक लगाते हैं,
अपनी कोई व्यथा या परेशानी,
सबसे लिए छूपाते है,
गैरों की कोई बात हो तो ,
चटकारे लिए सुनाते हैं,
खुद का एक दाना भी जख्म का ,
लोगों की निगाहों से बचाते है,
दुसरे के गहरे भी जख्म तो,
उसपर छुरी चलाते है,
ये ही तो रस्म है दुनिया का,
जो बड़े प्यार से लोग निभाते हैं,
बड़े यतन से चोट पर,
और प्रहार कर जाते हैं,
कुछ तो ,
खुलेआम ही खंजर चलाते है,
खुली रहें आँखें हमारी ,
और काजल चुराते हैं,
कब चल जाए जुबाने खंजर,
हम भान लगा ना पाते हैं,
समझ पाते हैं जबतक,
तबतक तीर चुभ,
आरपार हो जाते हैं,
कभी,कभी तो ऐसी मक्कारी,
खुद अपने ही कर जाते है,
गैरों की बातों को लोग,
दिल थाम के सुनाते हैं,
जब पड़ जाए यही खुद पे,
तो सौ,सौ रंग दिखाते हैं,
गैरों की कोई बात हो तो,
चटकारे लिए सुनाते हैं,
अपनी कोई व्यथा या परेशानी ,
सबसे लिए छूपाते है,
मरहम की कौन बात करे,
मुट्ठी भरे रखते हैं नमक से,
वक़्त मिलते ही ,
जख्म पर नमक डाल जाते हैं,
आंसू कौन यह पर पोंछे,
लोग बस नैन भीगा जाते हैं,
क्या पाते है ,
दूसरे के गिरेबान में हाथ लगाते हैं,
सामनेवाले की ओर,
अंगुली उठाते हैं,
ये सोंच नहीं पाते हैं,
एक अंगुली सामने वाले की,
बाकी तीन तो अपनी कमी दिखाते हैं,
यही तो रस्म है दुनिया का ,
जो बड़े प्यार से लोग निभाते हैं,
खुद का जख्म छूपाते फिरते ,
गैरों पर नमक लगाते हैं,
दूसरे के गहरे भी जख्म तो,
उनपर छुरी चलाते हैं,
यही तो रस्म है दुनिया का ,
जो बड़े प्यार से लोग निभाते हैं.
"रजनी "
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 28.11.09 0 comments
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मैं तुझे बरसने का आधार नहीं दे पाऊँगी,
पहली पोस्ट में इसकी कुछ lines छूट गई थी ,
इस पोस्ट पे उसे पूरी दे दे रही हूँ.
मैं तुझे बरसने का आधार नहीं दे पाऊँगी,
मैं तुझे बरसने का आधार नहीं दे पाऊँगी,
चाहते हो जो खुशियों का संसार,
तुम्हें वो खुशियों का संसार नहीं दे पाऊँगी,
मै वो धरा नही जो बेसब्री से ,करे बादल का इंतजार,
ये बावले बादल कहीं और बरस,
मै तुझे बरसने का आधार नही दे पाऊँगी,
पता है तेरे जिगर में मेरे लिए अगाध छिपा अनुराग है,
पर मै तेरे अनुरोध को स्वीकार नहीं पाऊँगी,
क्योंकि मै वो धरा नही जो बेसब्री से ,करे बादल का इंतजार,
ये बावले बादल कहीं और बरस,
मै तुझे बरसने का आधार नही दे पाऊँगी,
क्योंकि मै वो दीया हूँ जो जलती तो हूँ ,
पर तुम्हे रौशनी नही दे पाऊँगी,
क्योंकि मै वो धरा नही जो बेसब्री से ,करे बादल का इंतजार,
ये बावले बादल कहीं और बरस,
मै तुझे बरसने का आधार नही दे पाऊँगी,
मत कर खुद को बेकरार इतना,
तुझको मै करार नही दे पाऊँगी,
मै वो सरिता हूँ जो भरी तो हुई नीर से,
पर तेरे प्यास को बुझा नही पाऊँगी,
क्यों आंजना चाहते हो मुझे आँखों में,
मै वो काजल हूँ जो आँखों को कजरारी कर,
शीतलता नही दे पाऊँगी,
मत कर खुद को बेकरार इतना,
तुझको मै करार नही दे पाऊँगी,
क्योंकि मै वो धरा नही जो बेसब्री से ,
करे बादल का इंतजार,
ये बावले बादल कहीं और बरस,
मै तुझे बरसने का आधार नही दे पाऊँगी,
सुमन से भरी बाग़ हूँ मै,पर
तेरे संसार को सुगन्धित नहीं कर पाऊँगी,
क्यों लिखना चाहते हो मुझको गीतों में,
मै वो शब्द का जाल हूँ जो,
गीतों का माल नही बन पाऊँगी,
ये बावले बादल कहीं और बरस,
मै तुझे बरसने का आधार नही दे पाऊँगी,
चाहते हो जो खुशियों का संसार,
तुम्हें वो खुशियों का संसार नहीं दे पाऊँगी,
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 28.11.09 0 comments
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भ्रष्ट हो गया समाज छा गयी भ्रस्टाचारी है,
चारो तरफ छाई हुई भूखमरी और बेगारी है,
भ्रष्ट हो गया समाज छा गयी भ्रस्टाचारी है,
ऐसा दीमक जो धीरे,धीरे लकड़ी को चटकाती है,
भ्रस्टाचारी भी सबको ऐसे ही गर्त में गिराती है,
क्या नेता और क्या समाज सब को लगा इसका आग,
यह एक ऐसी चटनी है जो लग जाए जीभ को एक बार,
खाने को फिर मन करे उसको बारम्बार,
नाम बिके,सम्मान बिके या बिक जाए ईमान,
सबसे बड़ा अपना साधे काम,यही है भ्रस्टाचारी का नाम,
चारो तरफ छाई हुई भूखमरी और बेगारी है,
भ्रष्ट हो गया समाज छा गयी भ्रस्टाचारी है,
भ्रस्टाचार बन गया समाज एक अच्छी खासी है,
सच्चाई तो लगती अब इसकी दासी है,
कल्याण के मिले पैसों को अपने जेबों में लगाते हैं,
खर्च किये हजारों तो करोड़ों में दिखातें हैं,
सीधी साधी जनता को बेवकूफ बनाते हैं,
निरीह जन्तु सा पाकर उन्हें चराते हैं,
खुल जाए न पोल उनकी इसी भय से घबराते हैं,
गाहे, बगाहे देख मौके कुछ काम कर दिखाते हैं ,
चारो तरफ छाई हुई भूखमरी और बेगारी है,
भ्रष्ट हो गया समाज छा गयी भ्रस्टाचारी है,
सोये हुए जनता जब तक ना जागेगी,
भ्रस्टाचारी का भूत तबतक ना भागेगी,
भ्रस्टाचारी का भूत समाज से है भगाना,
एक स्वच्छ समाज, स्वच्छ भारत है बनाना.
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 28.11.09 0 comments
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और जो बिखर जाए उसका कोई वजूद नहीं होता
टूटा हुआ इंसान,
टुकड़ों में जीता तो है,
पर टुकड़ों की तरह,
पर उसे टूटने के बाद,
जोड़ा जाए,
तो वो जी उठता है,
फिर जोड़ने के बाद तोड़ दो,
तो वो जीता नहीं,
चूर हो जाता है,
इसीलिए कभी किसी,
टुकड़े में जी रहे ,
इंसान को मत जोड़ना,
अगर जोड़ने की जरूरत की भी,
तो उसे फिर चूर मत होने देना,
क्योंकि ,
चूर का मतलब ही होता है,
पूरी तरह से बिखरा हुआ,
और जो बिखर जाए,
उसका कोई वजूद नहीं होता.
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 28.11.09 0 comments
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तुम हकीकत बन मेरे पास आ जाना
दिल देता है ये ,
आवाज़ तुम्हे,
तुम कभी भी,
मुझसे दूर ना जाना,
तन्हा दिल ,
जब पुकारे तुम्हे,
तुम चुपके से,
मेरी धड़कनों में समाना,
उदासियाँ मेरी ,
सदायें दे जब,
मेरी खुशियों में ,
चार चाँद लगाना,
ख्वाबों में भी,
जब आवाज़ दूँ तुम्हें,
तुम हकीकत बन,
मेरे पास आ जाना.
"रजनी i "
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 28.11.09 0 comments
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अधूरी तस्वीर का कोई खरीदार नहीं होता
अधूरी तस्वीर का कोई खरीदार नहीं होता,
भर जाएँ रंग तो लग जाते हैं कतार खरीदारों के|
उगता हुआ सूरज सबका सलाम पाता है,
डूब जाए तो भूल जाते है, उसके उपकारों को|
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किसी को पाने की तमन्ना मत करो,
बल्कि अपने को ऐसे सांचे में ढालो कि,
लोग आपको पाने की तमन्ना करने लगें|
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Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 28.11.09 0 comments
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आज कुछ ना कहेंगे
meri ye kavita maine 10 years pahle likhi thi,
aaj aapsab ke beech rakh rahi hun.........
सोंच लिया है मैंने,
आज कुछ ना कहेंगे,
तुम सुनाओ बस,
आज तुम्हें सुनेगें,
सोंच लिया है मैंने ,
आज सुनना है तुमसे,
तेरे हर लब्ज़ कों,
जिगर थाम कर सुनेगें,
कुछ खनक होगी बातों में,
कुछ तन्हाई होगी,
कुछ तो उतर जाएगी,
सीधे जज्बातों से दिल में,
जब कभी तन्हा होंगे सुनेगें उन्हें,
सोंचेगें तेरे हर बात को,
कर जायेगी जो तन्हा कोई महफिल,
सोंच लिया है मैंने ,
आज कुछ ना कहेंगे,
तुम सुनाओ बस,
आज तुम्हें सुनेगें,
तुम्हारी बातें मन में लिखीं हैं ,
अब तक डायरी कि तरह,
जो गुनगुनाती हूँ ,
खालीपन में शायरी कि तरह,
कभी हंस जाती हूँ,
कभी बोल पड़ती हूँ,
कभी,कभी तेरी बातें ,
ऐसी लगती हैं ,
जैसे घुंघुरू बज उठे हों कानों में,
लगता है कभी उतर जायेंगे,
तेरे बोल खाली पैमानों में,
सोंच लिया है मैंने,
आज कुछ ना कहेंगे,
तुम सुनाओ बस,
आज तुम्हें सुनेगें,
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 28.11.09 1 comments
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