सोमवार, दिसंबर 07, 2009

आँखें नींद से बोझिल हैं, देखो कहीं मै ना सो जाऊं

 ये रचना हर संघर्षरत इन्सान के लिए.................
आँखें नींद से बोझिल हैं,
देखो कहीं मै ना सो जाऊं,

मैं दूर पथ की पथिक हूँ,
भटकन में पथ ना खो जाऊं,

कदम चलते चलते थकने लगे,
गहरी नींद में न सो जाऊं,

मुझे सोना नहीं,कुछ पाना है,
बहुत दूर है मंजिल,पर जाना है,

विजय का बिगुल बज जाएगा,
असंभव भी संभव हो जायेगा,

तन थक जाए,पर मन थक ना पायेगा,
तब हार भी बनेगी जीत की पताका,

भरे होंगे राह मुश्किल से,
पर अडिग रहना होगा अपने प्रण से,

निराशा कभी हाथ आएगी,
कभी हर्ष मन को महकाएगी,

रुकते रुकते से लगेंगे कदम,
कभी खुद आगे बढ जायेगे,

मुझे सोना नहीं कुछ पाना है,
बहुत दूर है मंजिल,पर जाना है,

मै क्या हूँ मेरी पहचान बता देना,
सोने लगूं तो जगा देना,

आँखें नींद से बोझिल हैं,
देखो कहीं मै ना सो जाऊं|

2 comments:

GAURAV PAWECHA BLOG ने कहा…

nahi sone denge aapko ji

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

ye kavita maine har sangharsrat insan ke liye liha hai,jo apni manjil paane ki raah me nikle hai, to jahir hai manjil se pahle raahon meanek kathinaaiyan aate hain,anek bhtkaav aate hain,to ham in paristhiti me apni manjil ko paane se kho na jaaye to ye kavita ki panktiyan hame apne manjil ki yaad dilayegi"mai kya hun meri pahchan bata dena,sone lagun to jaga dena,mai dur path kipathik hun bhatkan me path na kho jaun...........
sukriya gaurav ji.......