" चश्म -ये- जहाँ की जो मिली चिलचिलाती धूप,
कसीर-ये-रफ़ाकत के वादे टूट जाते हैं,
आतिश -ए - सहरा होती है सादिक ,
वो तो उड़ ही जाती है लगाकर परवाज ."
चश्म -ये- जहाँ -- जमाने की नज़र , कसीर-ये-रफ़ाक -- गहरे याराने , आतिशे - सहरा-- जंगल की आग ,सादिक - सच्ची बात, सच्चाई ,परवाज-- पंख.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
कसीर-ये-रफ़ाकत के वादे टूट जाते हैं,
आतिश -ए - सहरा होती है सादिक ,
वो तो उड़ ही जाती है लगाकर परवाज ."
चश्म -ये- जहाँ -- जमाने की नज़र , कसीर-ये-रफ़ाक -- गहरे याराने , आतिशे - सहरा-- जंगल की आग ,सादिक - सच्ची बात, सच्चाई ,परवाज-- पंख.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"