" चश्म -ये- जहाँ की जो मिली चिलचिलाती धूप,
कसीर-ये-रफ़ाकत के वादे टूट जाते हैं,
आतिश -ए - सहरा होती है सादिक ,
वो तो उड़ ही जाती है लगाकर परवाज ."
चश्म -ये- जहाँ -- जमाने की नज़र , कसीर-ये-रफ़ाक -- गहरे याराने , आतिशे - सहरा-- जंगल की आग ,सादिक - सच्ची बात, सच्चाई ,परवाज-- पंख.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
कसीर-ये-रफ़ाकत के वादे टूट जाते हैं,
आतिश -ए - सहरा होती है सादिक ,
वो तो उड़ ही जाती है लगाकर परवाज ."
चश्म -ये- जहाँ -- जमाने की नज़र , कसीर-ये-रफ़ाक -- गहरे याराने , आतिशे - सहरा-- जंगल की आग ,सादिक - सच्ची बात, सच्चाई ,परवाज-- पंख.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
9 comments:
Bahut Sunder Panktiyan....
aabhar monika ji........
बहुत उम्दा शेर प्रस्तुत किया है आपने तो!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति|
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है रजनी जी.
परन्तु, कुछ शब्द कठिन से लग रहें हैं. यदि उनका मतलब भी लिख दें तो समझने में और आसानी हो जायेगी.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.नई पोस्ट जारी की है.
aap sabhi ko mera naman ........
shashtri ji ...
rakesh ji ..........
patali .........ji
क्या बात है, बहुत सुंदर
यदि इन शब्दों को कुछ इस तरह लिखा जाए तो शायद ज़रा अच्छा हो!
चश्म -ए- जहाँ की जो मिली चिलचिलाती धूप,
कसीर-ए-रफ़ाकत के वादे टूट जाते हैं,
आतिश-ए -सहरा होती है सादिक ,
वो तो उड़ ही जाती है लगाकर परवाज .
रजनी आपने इधर मेहनत की है.
खूब पढ़ें! खूब लिखें!
hardik aabhar mahendra ji..........
sharoz ji aapko bhi aabhar ....... चश्म -ए- जहाँ ........... hi maine padha tha, zmane ki nazar ....
par kuchh apni tarf se nween rup dene k liye maine ....जहाँ -ए-चश्म kar diya ......... sukriya shayd waise shbd badlne se shabd ke arth par bhi asar pada ........
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