रहकर जिगर में कर देते हैं चाक चाक,
जिनपर जिगर ये निसार होता है.
वो छोड़ जाता है हर हाल में साथ,
जो सीरत से ही फरेबी फनकार होता है.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "
मंगलवार, दिसंबर 14, 2010
रहकर जिगर में कर देते हैं चाक चाक
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 14.12.10 9 comments
Labels: Poems
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