मेरी ये रचना समाज के कुछ उस भाग के लिए है जो आज आधी समाज को ढक चूका है...
हो सकता है ये रचना आप सबको पसंद न आये,पर ये मैंने जो देखा है वो ही आज फिर अपने कलम को लिखने को कहा.........आप सब की प्रतिक्रिया की आशा रखती हूँ.....
मेरी ये रचना उस नज़र के लिए है जो सचमुच नारी के रूप में एक माँ या बहन को नहीं देख पाते...(आपसब तक ये रचना रखने का अभिप्राय बस इस धारणा को बदलने की एक छोटी सी कोशिश है ......मेरी कोशिश को अपना साथ दें..........
ये वाक्या कहीं आपके साथ भी तो नहीं घटित हो रही , कहीं आप भी इस श्रेणी में सुमार तो नहीं,यदि हैं तो खुद को बदल लीजिये, कहीं ये पछतावा आपको भी न हो जाए...
हर नज़र अब तो सेक्स तलाशती है एक औरत में, चाहे वो ब्याही हो या कुंवारी ...
आज ये कहते हुए मुझे काफी अफ़सोस हो रहा कि जिस तेज़ी से जमाना बदल रहा उसी तेज़ी से लोगों के सोंच भी बदल गए,और बदले भी ऐसे कि उनके सोंच में हर शिष्टता ,भावना ना जाने कहा दफ़न हो गए..
कई दिनों से वो बाइक से करता था पीछा
girls college की आती,जाती लड़कियों का
उनके सर से पाँव तक के रचना को देख कर
फब्तियों के तीर से उन्हें बिंधा करता था
36, 28, 34...... अरे वाह काली नागिन है यार,
एक बार पलट कर देख ले तो बिना इसके डसे ही
मर जाऊं,
वो बार,बार college के गेट तक पहुँच रही लड़कियों के
एक ग्रुप को देख चिल्लाता रहा,ए पलट,एक बार पलट
जिसे उसने काली नागिन कहा था
वो काले रंग की लिबास में लड़की, पलट कर देखा ही नहीं
उस लड़के के सामने जाकर खड़ी हो गयी,लड़की को सामने देखते ही ,
वो शर्म से अपनी निगाहें झुका लिया,क्योंकि वो लड़की कोई और नहीं
उस लड़के ही छोटी बहन निकली,शर्म से बहन से निगाहें भी नहीं मिला पाया....
आज इस भूख ने भाई बहन के रिश्ते को भी लहुलुहान कर दिया है.............
मेरे इस रचना के लिए आपके प्रतिक्रिया की जरुरत है...........
शुक्रिया ........
BY RAJNI NAYYAR MALHOTRA....... 9:25PM....
सोमवार, जनवरी 04, 2010
पछतावा
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 4.1.10 6 comments
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