पत्थर से,
सर,
टकरा कर हम,
पूछते हैं,
ख़ुद से,
बता ,
कहीं चोट तो ,
नहीं लगी ,
लहू का ,
एक कतरा भी ,
नजर नहीं आता,
पर दर्द,
जिगर को ,
पार कर गयी.
"रजनी "
शुक्रवार, नवंबर 27, 2009
पर दर्द जिगर को पार कर गयी
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 27.11.09 0 comments
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चाहा था दामन भिंगोने, भिंगोने नहीं दिया
जब जजबात आंसुओं में ,
बह जाएँ तो क्या हो ?
मृगमरीचिका में हम
खो जाये तो क्या हो ?
मरहम लगानेवाले ही,
जख्म दे जाये तो क्या हो ?
बड़ी बेचैनी से करे धरती,
बादल का इंतजार,
वो बिना बरसे ही,
चला जाये तो क्या हो ?
अक्सर ऐसा होता है,
हंसनेवाला ही रोता है,
जजबात में खोकर कोई,
अपने दामन को भिंगोता है,
सागर भी भरा है पानी से,
फिर भी प्यासा रोता है,
खुद जलनेवाले के तले भी ,
अँधेरा होता है,
अक्सर ऐसा होता है,
हंसनेवाला ही रोता है
कोई आँखों में काटे रातें,
जब सारा जमाना सोता है,
कोई हंस कर मोती खोता है,
कोई रो कर मोती खोता है,
जजबात बह जाये मोती में,
तो मन हल्का होता है,
बता कर क़त्ल करे कोई ,
तो कोई बात नहीं,
अपनी जगह पर,
ये बात भी सही होता है,
पर बूत बना दिया हमें,
मोती खोने नहीं दिया,
चाहा था दामन भिंगोने,
भिंगोने नहीं दिया .
"rajni "
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 27.11.09 0 comments
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माँगा तो क्या माँगा
माँगा तो क्या माँगा ,
जो अपने लिए माँगा,
दूसरे के आंसू से,
अपना दामन भींगे,
सच्ची दुआ तो ,
इसे ही कहते हैं|
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 27.11.09 0 comments
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कहते हैं तमन्ना ना कर उस ख्वाब की जो पूरी न हो सके
कहते हैं तमन्ना ना कर उस ख्वाब की जो पूरी न हो सके,
देखो ना उस नजर को जो तुम्हे देख ना सके,
लेकिन हम कहते हैं कोशिश जरुर करना कुछ पाने की,
क्योंकि सौ ख्वाब देखो तो एक पूरी होती है,
शायद इन सौ को देखते,ज़िन्दगी के हर ख्वाब पूरे हो सके
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 27.11.09 0 comments
मैं तुझे बरसने का आधार नहीं दे पाऊँगी,
मैं तुझे बरसने का ,
आधार नहीं दे पाऊँगी,
चाहते हो जो ,
खुशियों का संसार,
तुम्हें वो संसार,
नहीं दे पाऊँगी,
मै वो धरा नही ,
जो बेसब्री से करे,
बादल का इंतजार,
ये बावले बादल ,
कहीं और बरस,
मै तुझे बरसने का,
आधार नही दे पाऊँगी,
पता है तेरे जिगर में ,
मेरे लिए ,
अगाध छिपा अनुराग है,
पर,
मै तेरे अनुरोध को ,
स्वीकार नहीं पाऊँगी,
क्योंकि ,
मै वो धरा नही ,
जो बेसब्री से करे,
बादल का इंतजार,
ये बावले बादल,
कहीं और बरस,
मै तुझे बरसने का ,
आधार नही दे पाऊँगी,
मै वो दीया हूँ,
जो जलती तो हूँ ,
पर तुम्हे ,
रौशनी नही दे पाऊँगी,
मत कर ,
खुद को,
बेकरार इतना,
तुझको ,
मै करार,
नही दे पाऊँगी,
मै वो सरिता हूँ ,
जो भर कर भी ,
नीर से,
पर तेरे प्यास को,
बुझा नही पाऊँगी,
क्यों आंजना चाहते हो,
मुझे आँखों में,
मै वो काजल हूँ ,
जो आँखों को कजरारी कर,
शीतलता नही दे पाऊँगी,
मत कर ,
खुद को बेकरार इतना,
तुझको ,
मै करार नही दे पाऊँगी,
क्योंकि ,
मै वो धरा नही जो बेसब्री से ,
करे बादल का इंतजार,
ये बावले बादल,
कहीं और बरस,
मै तुझे बरसने का,
आधार नही दे पाऊँगी.
"रजनी "
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 27.11.09 0 comments