शुक्रवार, दिसंबर 31, 2021

यहाँ सर्दियों का गुलाबी है मौसम



  कहाँ रह गये हो चले आओ  हमदम

  यहाँ  सर्दियों का गुलाबी  है  मौसम


  दिसम्बर  महीना  कड़ाके   की  सर्दी

  गिरा कर के पारा दिखाती है दमख़म

    

  घने कोहरे   में  वो  सूरज   छिपा  है

  धरा पर बिछी शाख़ फूलों पे शबनम


   रजाई  के अंदर  दुबक  कर रहें  हम

   मिले गर्म  कॉफी यही चाहे   आलम


   हवाएँ ये ठंडी  लगें जब भी तन  को     

   ये नश्तर सी चुभती करें साँसें  बेदम

   


   "डॉ" रजनी मल्होत्रा नैय्यर

       बोकारो थर्मल

गुरुवार, दिसंबर 30, 2021

अज़ीयत रसाँ है सफ़र ज़िन्दगी का

 पीछे नहीं  हटती कभी  इम्दाद से

मैने  हुनर ये परवरिश में  पाया  है

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मतला व शेर ....


आँखों से ग़म ढल जाता है 

एक पल ऐसा भी आता है 


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दुःखों के  साये  सदा  साथ  तो  नहीं  होते

 वो आ तो जाते हैं लेकिन चले भी जाते  हैं


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कभी समझ ही नहीं सके  हम, न जाने  कब कैसे हो गया ये

तुम्हारा कब्ज़ा हमारे दिल पर ,हमारा कब्ज़ा तुम्हारे दिल पर

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बंद  हो     पड़ा  जैसे   सीप में     रखा गौहर

आपने  मुझे  भी  महफ़ूज  कर   दिया   ऐसे    

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देखा सुहानी  झील में जब नाव का सफ़र     

  डल झील का सफ़र वो मुझे याद आ गया

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हमारी तिश्नगी  को   वो कभी  समझें नहीं   शायद

हमारी  आरजू   ये है   कि बस   दीदार   हो   जाये

कभी   माँगा  नहीं   मैने  समंदर  दे   मुहब्बत   का 

मिले क़तरा भी गर मुझको मुक़म्मल प्यार हो जाये 


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कट रहा इस ज़िंदगी का हर सफ़र आराम से

कुछ अज़ीज़ों  की दुआएँ काम आयी हैं  सदा


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 उस बात को तुम याद मत करना कभी 

  बरसों लगे जिस बात को भूल जाने  में 

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 इसी बहर पर 

  रिसने  लगे हैं ज़ख़्म  फिर  हो   कर  हरे  

  अरसे लगे  जिस चोट  को भर  जाने  में 

  

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नहीं राह आसां किसी  के लिए  भी

अज़ीयत रसाँ है सफ़र ज़िन्दगी का


अज़ीयत रसाँ-- कष्टदायक

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ज़िंदगी  जब   मुख़्तसर  है तो  दुआएँ  ये  करें

ज़िंदगी जितनी मिली कुछ नेक काम कर चलें

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.मतला 1 शे'र


आँखें  रोयी और कभी मुस्काई  होगी

याद मेरी जब तुझको  भी आयी होगी

दिल का शोर दबाया होगा  दिल में ही

वस्ल की यादें होंगी  जब  तन्हाई होगी

"डॉ. रजनी मल्होत्रा नैय्यर"