ग़ज़ल
सभ्यता की वो निशानी है अभी तक गाँव में
इक पुराना पेड़ बाक़ी है अभी तक गाँव में
शहर में फैले हुए हैं कांटे नफ़रत के मगर
प्रेम की बगिया महकती है अभी तक गाँव में
चैट और ईमेल पर होती है शहरी गुफ़्तगू
ख़त किताबत ,चिट्ठी पत्री है अभी तक गाँव में
दौड़ अंधी शहर में पेंड़ो को हर दिन काटती
पेंड़ो की पर पूजा होती है अभी तक गाँव में
एक पगली सी नदी बारिश में आती थी उफ़न
वैसे ही सबको डराती है अभी तक गाँव में
शहर में चाइनीज़ थाई नौजवानों की पसंद
ख़ुशबू पकवानों की आती है अभी तक गाँव में
दिन के चढ़ने तक हैं सोते मग़रिबी तहज़ीब में
तड़के- तड़के ही प्रभाती है अभी तक गाँव में
सभ्यता की वो निशानी है अभी तक गाँव में
इक पुराना पेड़ बाक़ी है अभी तक गाँव में
शहर में फैले हुए हैं कांटे नफ़रत के मगर
प्रेम की बगिया महकती है अभी तक गाँव में
चैट और ईमेल पर होती है शहरी गुफ़्तगू
ख़त किताबत ,चिट्ठी पत्री है अभी तक गाँव में
दौड़ अंधी शहर में पेंड़ो को हर दिन काटती
पेंड़ो की पर पूजा होती है अभी तक गाँव में
एक पगली सी नदी बारिश में आती थी उफ़न
वैसे ही सबको डराती है अभी तक गाँव में
शहर में चाइनीज़ थाई नौजवानों की पसंद
ख़ुशबू पकवानों की आती है अभी तक गाँव में
दिन के चढ़ने तक हैं सोते मग़रिबी तहज़ीब में
तड़के- तड़के ही प्रभाती है अभी तक गाँव में