गुरुवार, मार्च 07, 2013

फिर पड़ेंगे ओले जरा सर तो मुड़ायिये



शर्त है  ये चट्टान    भी    गिर   जाएगी  ,मगर,
एक   बार    हौसलों की तूफान  को  तो  लाईये,

ढूंढने   पर गीदड़ों   का  काफ़िला  मिल  जायेगा,
एक      बार    ढूंढने  को   शहर      तो    जाईये.

हर    बार    की  तरह  ही दम  तोड़ती    हुई   है,
इस   बार   इस  विधि पर  रौशनी   तो  लाईये

ओहदे   के   दंभ   में  जो  आसमां   में   उड़  रहे,
हकीकत की ज़मीं पर  उन्हें खींच कर तो लाईये .

बदले मिजाज़  मौसम  के,  बदले  हालात   से
फिर   पड़ेंगे    ओले   जरा   सर  तो  मुड़ायिये  .

सोचते हो   थम   जायेगा गरजने से  ये बवंडर ,
"रजनी"  बरसने   को घटा  बनकर  तो  छाईए,

7 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत उम्दा गजल,,,बधाई रजनी जी,,,,

Recent post: रंग गुलाल है यारो,

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति!
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ओले पड़ते हैं तभी, जब बादल छा जाय।
गंजा अपने शीश को, कैसे यहाँ बचाय।।
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आपकी पोस्ट का लिंक आज शुक्रवार के चर्चा मंच पर भी है!

Asha Lata Saxena ने कहा…

बदले मिजाज मौसम के ,बदले हालात से
फिर पड़ेगे ओले ज़रा सर तो मुदाइये |
बढ़िया पंक्ति
उम्दा रचना |

रविकर ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति-

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

aap sabhi ko mera hardik aabhar ..

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…
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Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति!
~सादर!!!