शुक्रवार, मार्च 16, 2012

नहीं मिलती कहीं राहत जहाँ में , ग़म के मारे को

मेरी तबीयत भी मिलती है नदिया के पानी से,
जो पल में बदल देती है अपने धारे को |

इस रास्ते मैंने गुज़ारे कई सफ़र तन्हा ,
मगर दिल ढून्ढ़ता है आज किसी सहारे को |

मिटा न दे लहर ,किनारे पर नाम लिखा तेरा
छिपा दिया पत्थर से, उस दरिया के किनारे को |

डगमगाते क़दम को जिससे मिल गयी मंजिल,
कैसे भूल जाये कोई उस राह के नज़ारे को |

मिले बातों से तस्कीन , कुछ पल भला "रजनी",
नहीं मिलती कहीं राहत जहाँ में , ग़म के मारे को |

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रजनी मल्होत्रा नैय्यर