सोमवार, सितंबर 10, 2012

आ गए घर जलानेवाले , हाथों में मरहम लिए

थम   गया  दंगा,  कत्ल   हुआ      आवाम     का , 
आ  गए घर जलानेवाले   ,  हाथों में  मरहम  लिए |

तारीकी  के अंजुमन   में,        साज़िश की  गुफ़्तगू,
आ गए सुबह    अमन का ,  हाथों  में  परचम  लिए |

सज़ावार     जो  हैं, "रजनी"  वो       खतावार     भी,
आ गए  चेहरे पर डाले नक़ाब  ,हाथों में दरपन लिए |
 

5 comments:

Vandana Ramasingh ने कहा…

अच्छी रचनाएँ हैं

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

वाह,,,,,, बहुत खूब,,,,रजनी जी,,,,,

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अरुन अनन्त ने कहा…

वाह अति सुन्दर बेहतरीन रचना

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच कहा है ... पहले घर जलाते हैं फिर मरहम लगाते हैं ...

सदा ने कहा…

वाह ... बेहतरीन ।