मंगलवार, जून 28, 2011

चश्म -ये- जहाँ की जो मिली चिलचिलाती धूप

" चश्म -ये- जहाँ की जो मिली चिलचिलाती धूप,
कसीर-ये-रफ़ाकत के वादे टूट जाते हैं,
आतिश -ए  - सहरा होती है सादिक ,
वो तो उड़ ही जाती है लगाकर परवाज ."


चश्म -ये- जहाँ -- जमाने की नज़र , कसीर-ये-रफ़ाक -- गहरे याराने , आतिशे - सहरा-- जंगल की आग ,सादिक - सच्ची बात, सच्चाई ,परवाज-- पंख.

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

9 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

Bahut Sunder Panktiyan....

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

aabhar monika ji........

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत उम्दा शेर प्रस्तुत किया है आपने तो!

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति|

Rakesh Kumar ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है रजनी जी.
परन्तु, कुछ शब्द कठिन से लग रहें हैं. यदि उनका मतलब भी लिख दें तो समझने में और आसानी हो जायेगी.

मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.नई पोस्ट जारी की है.

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

aap sabhi ko mera naman ........
shashtri ji ...

rakesh ji ..........

patali .........ji

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

क्या बात है, बहुत सुंदर

شہروز ने कहा…

यदि इन शब्दों को कुछ इस तरह लिखा जाए तो शायद ज़रा अच्छा हो!

चश्म -ए- जहाँ की जो मिली चिलचिलाती धूप,
कसीर-ए-रफ़ाकत के वादे टूट जाते हैं,
आतिश-ए -सहरा होती है सादिक ,
वो तो उड़ ही जाती है लगाकर परवाज .

रजनी आपने इधर मेहनत की है.
खूब पढ़ें! खूब लिखें!

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

hardik aabhar mahendra ji..........

sharoz ji aapko bhi aabhar ....... चश्म -ए- जहाँ ........... hi maine padha tha, zmane ki nazar ....
par kuchh apni tarf se nween rup dene k liye maine ....जहाँ -ए-चश्म kar diya ......... sukriya shayd waise shbd badlne se shabd ke arth par bhi asar pada ........