मंगलवार, अप्रैल 05, 2011

तुम्हारे बगैर

कई बार,
अनगिनत प्रश्न किये
प्रियतम ने,
प्रेयसी  से|
क्या वजूद है ?
हमदोनों  के बीच
जो बंधी डोर है
आत्मिक .शारीरिक, 
या फिर मन से ,
मन का बंधन ?
कुछ पल मौन
सुनती रही
अपने प्रीतम की
बातों को |
फिर कुछ क्षण
रुक कर कहा 
निष्प्राण थे,

मेरे 
आत्मा,तन और मन,
पर ,
तुम्हें   पाने के बाद
झंकृत हो गए हैं
मेरे रोम -रोम पुलकित होकर ।
तुम्हीं   कहो ?
क्या वजूद है मेरा,
तुम्हारे बग़ैर | 

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
 

11 comments:

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह ! रजनी जी,
इस कविता का तो जवाब नहीं !

संजय भास्‍कर ने कहा…

नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें !
माँ दुर्गा आपकी सभी मंगल कामनाएं पूर्ण करें

संजय भास्‍कर ने कहा…

काफी सुंदर तरीके से अपनी भावनाओं को अभिवयक्त किया है

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर, बिना एक-दूसरे का किसी का वजूद कहां...

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

मै भी अभी रांची में ही हूं...

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

is sneh ke liye
sanjay bhai bahut bahut sukriya........

vina ji aapko bhi hardik aabhar ...

केवल राम ने कहा…

प्रेम को बहुत सार्थक शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त किया है आपने ..एक के बिना दुसरे का अस्तित्व नहीं रहना कितना सटीक है ..आपका आभार रजनी जी

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

तुम्ही कहो ?क्या वजूद है मेरा ,तुम्हारे बगैर.

itna samarpan:)
itna pyar.........

Kunwar Kusumesh ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

aap sabhi mera hardik aabhar ....

mukesh ji ..

kushumesh ji...

keval ram ji ... sneh yun hi milta rahe

Khare A ने कहा…

wah! shaandar kavita, bakai