गुरुवार, जनवरी 06, 2011

कदम कदम पर बेबसी का शिकार ज़िन्दगी है

कुछ शाजिसों से होती शर्मशार ज़िन्दगी है,
कदम कदम पर बेबसी का शिकार ज़िन्दगी  है.

साथ मिला कदम से कदम ,जिनके हम चलते रहे,
वो ही छूपा कर खंजर, हमें बन रहनुमा छलते रहे.

एक  चेहरे पर कितने ही  चेहरे बदले आज इन्सान ने,
हैवान है या आदमी  शक्ल आये ना पहचान में.

बने फिरते हैं योद्धा तो आयें सामने  मैदान में,
छूप कर वार करना आदत  कायर इन्सान में.

आज हम पर दागी हैं अंगुलियाँ , तो शेर ना बन जायेंगे,
खुद की ही निगाहों में गिर, वो शर्म से मर जायेंगे.

किस हद तक आज गिर रहा इस दौड़ में जमाना  है ,
सच्चाई दम तोड़ने लगी हर कोई झूठ का दीवाना है.

"   रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

5 comments:

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

रजनी जी, हर नज़्म बिल्कुल सच्चाई बयां करती हुई..... सुंदर प्रस्तुति .
.
नये दसक का नया भारत (भाग- १) : कैसे दूर हो बेरोजगारी ?

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह क्या खूब नज्मे लिखी है जनाब , दिल बाग बाग हुआ . बहुत खूबसूरत, हर नज़्म चश्मे बद्दूर .

संजय भास्‍कर ने कहा…

समर्पण के साथ लिखी सुन्दर गजल के लिए बधाई!
नये साल की मुबारकवाद कुबूल करें!

amar jeet ने कहा…

किस हद तक आज गिर रहा इस दौड़ में जमाना है ,
सच्चाई दम तोड़ने लगी हर कोई झूठ का दीवाना है
बहुत खूब लिखा आपने

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

hardik aabhar aap sabhi ko aur nutan varsh ki shubhkamnayen ......