छूट गया निगाहों का मिलकर मुस्कुराना,
आज जब भी भीगती हैं निगाहें तो हौले से मुस्काती हैं,
तेरे यादों का मेरी निगाहों से जाने कौन सा नाता है.
तस्वुर में जब भी आता है भीग कर भी मुस्कुराती हैं निगाहें.
गुरुवार, अगस्त 19, 2010
छूट गया निगाहों का मिलकर मुस्कुराना,
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 19.8.10 0 comments
Labels: Poems
शाम होते ही , बढ़ जाती हैं बेताबियाँ,
वो ढला दिन,
गया आफ़ताब ,
अब फिर तू ,
जलने की,
तैयारी कर ले ,
शाम होते ही ,
बढ़ जाती हैं बेताबियाँ,
अब तो हवाओं से,
तू यारी करले.
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 19.8.10 3 comments
Labels: Poems
सदस्यता लें
संदेश (Atom)