लुट गयी बस्ती मेरे हाथों, मुझे ही खबर नहीं,
मालूम चला ,जब खुद को तन्हा पाया ,उसी बाज़ार में.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
मंगलवार, जुलाई 06, 2010
मुझे ही खबर नहीं
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 6.7.10 4 comments
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जब भी , हँसने की , तैयारी की मैंने,
इस (दुनिया के )रंग मंच पर ,
उपरवाले को ,
मेरा ही किरदार,
क्यों भाया ,
जब भी ,
हँसने की ,
तैयारी की मैंने,
उसने,
रोने का,
किरदार ,
थमा दिया .
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 6.7.10 2 comments
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आज वो कान्धा छूट गया
"जिस गुलशन ने ,
खिलना सिखाया था,
हमसे ही लूट गया,
रोया करते थे,
जिस पर लग कर,
आज वो कान्धा छूट गया."
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 6.7.10 4 comments
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