शुक्रवार, सितंबर 04, 2015

गुरू ( कल, आज और कल ) शिक्षक दिवस पर



गुरु गढ़ता  था
अपने   ज्ञान   के सांचे पर
निकलते थे
तब जाकर
गुरु भक्त आरुणि,
राम,
एकलव्य
अर्जुन !
लक्ष्य होता था
संधान का |
कल्याण का ,
फैलाते रहे प्रकाश पुंज
नवीन ज्योति का
तभी तो आलोकित है
युगों तक उनका नाम |
बुहारते रहे
पथ कर्म का ,
फल की चाह से बनकर अंजान ...
सन्मार्ग की गति
सदा पथरीली रही है
गुरु सदा से निकालता  रहा
उसी पथरीली ज़मीन को  तराश  कर
अपनी अनुभूतियों
और क्षमताओं से खिलाता रहा है
महकता हुआ पुष्प गुच्छ
जो कहलाते आये हैं
कर्मधार,
युगपुरुष,
वीरांगना,
विदुषी |
लहरा रहे दिग- दिगंत तक
अपनी शौर्य की पताका
वैदिक युग  से लेकर इक्सवीं  सदी तक ...
पर आज बदल रहा है
गुरु की परिभाषा
खोने लगा गुरु अपनी महत्ता
भूमि वही उर्वर है
बीज पुष्ट नहीं बन पा रहे |
नैतिकता की ,
सम्मान की,
विश्वास की,
ज्ञान की तुला में
खोता जा रहा है
आज  गुरु अपना घनत्व …
कैसे निर्धारित करेंगे
आनेवाले समय में
जीवन मूल्यों को ?
गुरु -शिष्य परम्परा को !
जहाँ उपनयन संस्कार के बाद
अधिकार की डोर
गुरु सँभालते थे
कर्तव्यों का निर्वाह
शिष्य हँसकर करता था
फिर से चाहिए
आनेवाले कल को
गुरु ...
जो ले जाये अंधकार से प्रकाश की ओर
तुम बनो भावी गुरु जिसकी ओज
वशिष्ट ,
द्रोण,
विश्वामित्र,
परशुराम,
शौनक,
चाणक्य,
शंकराचार्य,
संदीपनी,
रामकृष्ण परमहंस
सी भी ऊँची और प्रखर हो ,
जो बनाये रखे
गुरु की महत्ता हर युग में |



"रजनी मल्होत्रा नैय्यर "

3 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (06-09-2015) को "मुझे चिंता या भीख की आवश्यकता नहीं-मैं शिक्षक हूँ " (चर्चा अंक-2090) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी तथा शिक्षक-दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत प्रभावी और सारगर्भित प्रस्तुति...

Unknown ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |