गुरुवार, मई 09, 2013

हो जाता है रिश्तों का रासायनिकरण

 जब रिश्ते पारदर्शी होकर भी,
कफ़स में कैद से लगते हैं, तब
दो लोगों के बीच की डोर ,
छूटने लगती है ,
टूटने के लिए |
या फिर गिरह पड़ जाते हैं
उस डोर में   
जिसने दो सोच को,दो आत्माओं  को,
दो शरीर को एक करने में
अपनी  अस्तित्व ही मिटा दी  |
बरबस ही,
मैं और तुम से हम का हो जाना ,
और फिर से वापस मैं और तुम में बदल जाना ,
ऐसा ही लगता है न ?
जैसे जीवन की प्रयोगशाला में भी ,
कोई रासायनिक क्रिया चल कर ,
बदल देती है एक ही पल में,
रिश्तों का समीकरण
 हो जाता है  रिश्तों  का भी    रासायनिकरण |

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "