शुक्रवार, सितंबर 28, 2012

एक दरिया ख्वाब में आकर यूँ कहने लगा


कभी जलते चराग के लौ को बना कर अपना  साथी,
हमने    दास्तान सुना   दी गम   -- ज़िन्दगी की |

कभी   हवा के     झोंके  संग    "रजनी" उड़ा    दिए ,
जितने    भी    मिले    दस्तूर    दुनिया  के चलन से |
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आज    तो    दर्द     से     मुलाक़ात    करने     दीजिये,
कबतक मेरे दर   से   वो   खाली      हाथ    जाये ?
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एक     दरिया    ख्वाब  में     आकर    यूँ   कहने लगा ,
औरों    की    तरह    तू  मुझमें  हाथ   धोता  क्यों नहीं "

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कुछ   लोग    तुकबंदियों    को    ग़ज़ल      कहते     हैं,
जैसे    ग़रीब    झोपड़े    को      महल    कहते      हैं |

जमाने       में     किसी    काम      की    आगाज़   को ,
कुछ       लोग ,   आरम्भ,   कुछ    पहल    कहते  हैं |

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ग़मों   को   पी     जाईये,     खुशियों      को    बाँटिये,
फूलों    से     राह    सजाईये ,   काँटों     को   छांटिए |

हमदर्दी   से   दिल     मिलाईये,   दुश्मनी    को  पाटिये ,
अमन   का   पैगाम   "रजनी"   सरहदों      में    बाँटिये |
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सागर   सा उन्मादी    हो , बस  दरिया   सा बहता  चल,
सहरा के अनल   सा    हो , बस समां  सा  जलता चल |


" सियहबख्ती     है                      पैवस्ते      -जबीं ,
एक       मिटे            तो   दूसरी     उभर   आती      है "
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रजनी नैय्यर मल्होत्रा 

सोमवार, सितंबर 17, 2012

दुपट्टे कांधे का बोझ बन गए



आ जाती थी हया की रेखाएं,
 आँखों में
जब भी ढल जाता था ,
कांधे से दुपट्टा |
शर्माए नैन तकते थे
राहों में
जाने -अनजाने निगाहों को,
जब भी हट जाता वक्ष से
आंचल  |
ख़ुद को
लाज के चादर में
सिमट कर
एकहरी
कर लेती थी ,
जब भी होती थी हवाओं संग
दुपट्टे की आँख मिचौली ,
हवाओं के रफ़्तार से ही
 हाथ थामते थे आँचल को ...
पर ये क्या हो गया ?
अचानक कैसी  आंधी आई
उड़ा  ले गयी
निगाहों का पानी  !
अब दुपट्टे
कांधे का बोझ बन गए
आंचल वक्ष पर थमते नहीं
ढलक जाते हैं !

 "रजनी नैय्यर मल्होत्रा "


शुक्रवार, सितंबर 14, 2012

सिर्फ़ हर वर्ष हिंदी दिवस मना लेने से क्या होगा ?

सुबह से रात तक हम हर किसी से (ज्यादातर ) हिंदी में ही बात करते हैं , फिर भी हिंदी को घृणित नज़र से क्यों देखते हैं ? अपने बच्चों को हिंदी में ही डांटते हैं , गलियां भी किसी को हिंदी में ही देते हैं , राशन से लेकर सब्जी, का मोल भाव भी हिंदी में ही बोल कर बात कर करते हैं , फिर क्यों जब हिंदी मीडियम की पढ़ाई .की या हिंदी विषय से पढ़ाई की बात आती है तो लोग नाक भौं सिकोड़ते हैं ?
अपने बच्चों को अंग्

रेजी मीडियम में पढ़ा रहे अच्छी बात है , पर हिंदी से दूर करना कहाँ तक सही है ,जो बच्चा हिंदुस्तान में पैदा हुआ ,हिंदी ज़मीं और जुबां का होकर भी ,सही ढंग से अपने मंथली टेस्ट या में , हिंदी के किसी भी परीक्षा में अच्छे ढंग से पास होने के नंबर भी नहीं ला पाता है , इससे साफ़ जाहिर होता है हम ,और आप आज अंग्रेजी के पीछे हिंदी को कहाँ छोड़ आये हैं |

दूसरे भाषा का जानकर होना अच्छी बात है ,पर उसके पीछे अपनी ही भाषा को नज़रंदाज़ करना ये तो वही बात हुई..........
दूसरे की माँ अपनी माँ से ज्यादा खुबसूरत हो तो क्या उसके पीछे अपनी माँ को छोड़ देंगे ?

सिर्फ़ हर वर्ष हिंदी दिवस मना लेने से क्या होगा ? जबतक इसपर सबकी सहमती की पुष्टि नहीं हो जाती कि हिंदी को ही सभी सरकारी, गैर सरकारी स्थान पर पहला स्थान मिलना चाहिए अन्य भाषा को बाद में |
हिंदी हमारी शान रही है, हिंदुस्तान की पहचान रही है ....आज 14 सितम्बर के ही दिन संविधान ने हिंदी को राजभाषा बनाने की मान्यता दी थी | हिंदी राजभाषा ,राष्ट्र भाषा , जन -जन की भाषा
बन कर अपनी उसी सम्मान को पा ले |

सोमवार, सितंबर 10, 2012

आ गए घर जलानेवाले , हाथों में मरहम लिए

थम   गया  दंगा,  कत्ल   हुआ      आवाम     का , 
आ  गए घर जलानेवाले   ,  हाथों में  मरहम  लिए |

तारीकी  के अंजुमन   में,        साज़िश की  गुफ़्तगू,
आ गए सुबह    अमन का ,  हाथों  में  परचम  लिए |

सज़ावार     जो  हैं, "रजनी"  वो       खतावार     भी,
आ गए  चेहरे पर डाले नक़ाब  ,हाथों में दरपन लिए |
 

जुड़ा है दर्द ज़िन्दगी से,सूदखोर की तरह

 ख़्वाब आयें पलकों पर ,तमन्ना नहीं रही,
 कि  रातें  भी तो अब सुकून से कटती नहीं ,| 

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लिखनेवाले   ने, कतरे  को   भी  दरिया  लिखा ,
जब बात आई इतिहास की दरिया नहीं मिला कहीं |

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 हर  बार चुकाने की  सोचूँ   दर्द का ब्याज,
पर जुड़ा है  दर्द ज़िन्दगी से,सूदखोर की  तरह |
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" जो हर   बात पर दाद देते हैं , हर   बात  पर  वाहवाही ,
"सब धान बाईस पसेरी "उनकी महफ़िल  में गया तो पाया |

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एक राह है जो   मंजिल तक जाती है,
एक राह है   जो  मंजिल   भुलाती   है |

"रजनी"