मंगलवार, जून 29, 2010

गुफ्तगू से नहीं,लरजते अधर, सितम बोलते हैं,


गुफ्तगू से नहीं,लरज़ते   अधर, सितम बोलते हैं,
भरम है उन्हें ,कि हम कम बोलते हैं.

निगाहें हँसती भी मेरी, लगे नम  बोलते हैं,
भरम है उन्हें ,कि हम कम बोलते हैं.

किसी के हुनर को क़लम ,किसी के क़दम  बोलते हैं,
कोई ले  अल्फ़ाज़ों  का सहारा,किसी के ग़म  बोलते हैं.

गुफ्तगू से नहीं,लरज़ते अधर, सितम बोलते हैं,
भरम है उन्हें ,कि हम कम बोलते हैं.

जो तल्ख़ हों मिज़ाज  से,उनके अहम बोलते हैं,
तुम भी कहोगे मुख्तारी से, जो हम बोलते हैं.

नादाँ हैं जो दिलनशीं को, संगदिल सनम बोलते हैं.
शरारा   होता है   जिनकी  तहरीर में ,उनके दम बोलते हैं.

गुफ्तगू से नहीं,लरज़ते अधर, सितम बोलते हैं,
भरम है उन्हें ,कि हम कम बोलते हैं.

"रजनी "

रविवार, जून 27, 2010

जिस आसमां ने मुझको चमकना सिखाया ,.

जिस आसमां ने मुझको चमकना सिखाया ,
आज  खुद से वो ,क्यों  मेरा दामन छुड़ा गया.

मै चाँद तो थी पर चमक ना थी मेरी,
दी रौशनी मुझे दमकना सीखा गया.

थी मंजिल मेरे निगाहों के आगे,
पग बन मेरे ,मुझे चलना सीखा गया.

अँधेरा हटाने को मेरे तम से मन के,
वो बना कर सितारा,मुझे ही जला गया .

"रजनी" (रात )  की ना कहीं  सुबह है,
इस बात का वो अहसास दिला   गया.

"रजनी"

सागर में रहकर भी, प्यासे रह गये



सागर में रहकर भी,
प्यासे रह गये,
खुशियों के ढेर में भी,
उदास रह गये,
मोम लिए बर्फ पर थे,
फिर भी पिघल गये,
ठंडा था दूध,फिर भी ,
ठन्डे  दूध से जल गये,
मृग मरीचिका मन का भ्रम है,
फिर भी सोने का देखा हिरन,
तो मन मचल गये,
बंद रखा था पलकों को,
मोती छूपाने के लिए,
बंद पलकों से भी,
मोती निकल गये,
हर धड़कन को छू लें,
वो एहसास बन गये,
हम आदमी थे आम,
अब ख़ास बन गये,
सागर में रहकर भी,
प्यासे रह गये,
खुशियों के ढेर में भी,
उदास रह गये,
हम आदमी थे आम,
अब ख़ास बन गये. 


शनिवार, जून 26, 2010

वो, खुद को , पर्दानशी कहते रहे



" उठ गया चिलमन ,
उनके,
हर हसीन राज़ से,
फिर भी ,
वो,
खुद को ,
पर्दानशी कहते रहे."

"रजनी "

शुक्रवार, जून 25, 2010

जो टूट कर भी, मुझे, जोड़ता गया

"कुछ इस तरह से,
टूटा,
वो आसमां से,
तारा,
जो टूट कर भी,
मुझे,
जोड़ता गया."

जितनी भी,
निराशा  की
डोर ,
बंधी थी
मेरे,
मन में,

उस,
डोर  की
कड़ी,
को  वो,
तोड़ता गया.

गुरुवार, जून 24, 2010

बेबस रहा संगीत मेरा

" बेबस रहा  संगीत मेरा,
संवरने  को ,
हम बंधे खड़े  रहे ,
रीतों से ,
अब वो साज़ ,
नज़र नहीं आता ,
जो बन जाते  थे,
  धुन मेरे गीतों के.."

"रजनी "

बुधवार, जून 23, 2010

इतिफाक से ही , सामना तो, हो ही जाता है, मुश्किलों से,

इतिफाक से ही ,
पर,
सामना तो,
हो ही जाता है,
मुश्किलों से,
सबका.
हम उसे,
स्वीकार करें,
या ना करें,
पर,
नियति अपने,
तय समय पर,
हर कार्य को करती है .

मंगलवार, जून 22, 2010

बस एक इरादा ही, काफी है, फैसले, बदलने ले लिए,

उस ज़िन्दगी को,
 क्या कहें ?
जो भरी ना हो,
चुनौती से ,
बस एक इरादा ही,
काफी है,
फैसले,
बदलने ले लिए,
हर पल जो,
तैयार हो,
मुश्किलों  में भी,
चलने के लिए.

मंगलवार, जून 01, 2010

टूट कर भी मेरा वजूद, बिखर नहीं पायेगा

जिस पर टिका है ,
अस्तित्व मेरा ,
वो बुनियाद ,
तुम्हारा कांधा है,
जानती हूँ ,
टूट कर भी मेरा वजूद,
बिखर नहीं पायेगा ,
क्योंकि ,
इसे ,
तुम्हारे संबल ने,
मजबूती से बांधा है .