शुक्रवार, नवंबर 27, 2009

चाहा था दामन भिंगोने, भिंगोने नहीं दिया

जब जजबात आंसुओं में ,
बह जाएँ तो क्या हो ?

मृगमरीचिका में हम
खो जाये तो क्या हो ?

मरहम लगानेवाले ही,
जख्म दे जाये तो क्या हो ?

बड़ी बेचैनी से करे धरती,
बादल का इंतजार,

वो बिना बरसे ही,
चला जाये तो क्या हो ?

अक्सर ऐसा होता है,
हंसनेवाला ही रोता है,

जजबात में खोकर कोई,
अपने दामन को भिंगोता है,

सागर भी भरा है पानी से,
फिर भी प्यासा रोता है,

खुद जलनेवाले के तले भी ,
अँधेरा होता है,

अक्सर ऐसा होता है,
हंसनेवाला ही रोता है

कोई आँखों में काटे रातें,
जब सारा जमाना सोता है,

कोई हंस कर मोती खोता है,
कोई रो कर मोती खोता है,

जजबात बह जाये मोती में,
तो मन हल्का होता है,

बता कर क़त्ल करे कोई ,
तो कोई बात नहीं,

अपनी जगह पर,
ये बात भी सही होता है,

पर बूत बना दिया हमें,
मोती खोने नहीं दिया,

चाहा था दामन भिंगोने,
भिंगोने नहीं दिया .

"rajni "