शनिवार, नवंबर 28, 2009

भ्रष्ट हो गया समाज छा गयी भ्रस्टाचारी है,

चारो तरफ छाई हुई भूखमरी और बेगारी है,
भ्रष्ट हो गया समाज छा गयी भ्रस्टाचारी है,
ऐसा दीमक जो धीरे,धीरे लकड़ी को चटकाती है,
भ्रस्टाचारी भी सबको ऐसे ही गर्त में गिराती है,
क्या नेता और क्या समाज सब को लगा इसका आग,
यह एक ऐसी चटनी है जो लग जाए जीभ को एक बार,
खाने को फिर मन करे उसको बारम्बार,
नाम बिके,सम्मान बिके या बिक जाए ईमान,
सबसे बड़ा अपना साधे काम,यही है भ्रस्टाचारी का नाम,
चारो तरफ छाई हुई भूखमरी और बेगारी है,
भ्रष्ट हो गया समाज छा गयी भ्रस्टाचारी है,
भ्रस्टाचार बन गया समाज एक अच्छी खासी है,
सच्चाई तो लगती अब इसकी दासी है,
कल्याण के मिले पैसों को अपने जेबों में लगाते हैं,
खर्च किये हजारों तो करोड़ों में दिखातें हैं,
सीधी साधी जनता को बेवकूफ बनाते हैं,
निरीह जन्तु सा पाकर उन्हें चराते हैं,
खुल जाए न पोल उनकी इसी भय से घबराते हैं,
गाहे, बगाहे देख मौके कुछ काम कर दिखाते हैं ,
चारो तरफ छाई हुई भूखमरी और बेगारी है,
भ्रष्ट हो गया समाज छा गयी भ्रस्टाचारी है,
सोये हुए जनता जब तक ना जागेगी,
भ्रस्टाचारी का भूत तबतक ना भागेगी,
भ्रस्टाचारी का भूत समाज से है भगाना,
एक स्वच्छ समाज, स्वच्छ भारत है बनाना.